सच हम कितना भी पा लें पर यदि संतोष न पाया तो सब बेकार है.मन सदा ही उदासीन एवं बेचैन रहता है.अतः हम जो भी उन्नति / तरक्की या कुछ भी सुख पाएं उसकी खुशी मानें पूरी संतुष्टि के साथ.
मीनाक्षी श्रीवास्तव
गुरुवार, 13 मई 2010
मंगलवार, 11 मई 2010
sangeet
शास्त्रीय संगीत की तुलना निर्गुण भक्ति से की जा सकती है ;जैसे निराकार की परम आनंदानुभूति ज्ञानी जन आत्मिक रूप से प्राप्त करता है ;ठीक वैसे ही संगीतज्ञ भी शास्त्रीय संगीत का आनंद भीतर से महसूस करता है .
मीनाक्षी श्रीवास्तव
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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